नंगेपांव पूंजीवाद को कमज़ोर करते गांधी के अनुयायी
मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा रूप में जाना जाता है। वे एक वकील थे, जिन्होंने ब्रिटिश राज से लोहा लिया और जीत हासिल की। आध्यात्मिकता और चतुर राजनीतिक रणनीति का मिश्रण, गांधी का अहिंसावाद इतना शक्तिशाली साबित हुआ कि इसने दुनिया के अब तक के सबसे बड़े साम्राज्य को गिरा दिया।
गांधी को प्यार से बापू और राष्ट्रपिता कहा जाता है। उनका चेहरा भारतीय बैंक नोटों को सुशोभित करता है। हालांकि, आज़ादी के 70 साल बाद और गांधी की हत्या के बाद, भारत
भारत उपभोग के दम पर आर्थिक तरक्की का अनुभव कर रहा है। महात्मा की सरलता, आत्मनिर्भरता, बांटने के कर्तव्य और शारीरिक श्रम की गरिमा की वकालत में थी। उपभोक्तावाद से अंधे हो चुके लाखों आधुनिक भारतीयों को ये बेतुका लग सकता है।
कुछ भारतीय महसूस करते हैं कि आज, भारत को, गांधीवाद की पहले से कहीं अधिक ज़रूरत है। RTD ने गांधी के वर्तमान शिष्यों से मिलने के लिए भारत भर में यात्रा की, और ऐसे लोगों से मुलाकात की, जिन्हें अक्सर गांधीवादी के रूप में जाना जाता है। उनमें एक ज़बरदस्त रूप से तंदुरुस्त रेलवे प्रबंधक और एक ऐसे शिक्षक शामिल हैं, जो हार्ले डेविडसन पर स्कूलों में गांधी के संदेश को पहुंचाते हैं। साथ ही, आज भी हाथ से कताई करने वाली, विश्वविद्यालय की एक लेक्चरर और गांधी के अंतिम जीवित असिस्टेंट वी कल्याणम से भी RTD ने बात की। प्रत्येक व्यक्ति, भले ही छोटे रूप में, गांधी जी की शिक्षा का सम्मान करने का प्रयास करता है।
जैसे ही उनके अनुयायी गांधी की सोच को व्यवहार में लाते हैं, वे उपभोक्तावाद से मुक्ति का अनुभव करते हैं, लेकिन क्या वे नई पीढ़ी को 21वीं सदी के पूंजीवाद की ज़ंजीरों से मुक्त होने के लिए राज़ी कर सकते हैं?