मारियुपोल में यूक्रेनी हमलों के बाद बचे लोगों को मिला आश्रय
“ये अज़ोव बटालियन का काम है। उन्होंने लोगों को अपने घरों से बाहर जाने और बेसमेंट में रहने पर मजबूर कर दिया। फिर उन्होंने टैंकों से यहां और वहां से शूटिंग शुरू कर दी”, एक मारियुपोल के निवासी ने फिल्म क्रू को अपनी कहानी बताई। मारियुपोल में 4 लाख से ज़्यादा लोगों को घरों के बेसमेंट में रहना पड़ा क्योंकि वे शहर छोड़ नहीं पाए। उन्होंने यूक्रेनी टैंकों को रिहायशी इमारतों पर फायरिंग करते देखा। उन्होंने अपनी आंखों से देखा नरक क्या होता है। अब वे खुश हैं कि वे ज़िन्दा बच पाए और एक नई शुरुआत की उम्मीद कर रहे हैं।
इस फिल्म में कई हीरो हैं। एक रूसी सैन्य अधिकारी जो मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए मारियुपोल के घर-घर जाता है। अमेरिका के टेक्सास का एक स्वयंसेवक, जो निकासी (evacuation) के दौरान बिछड़े परिवारों को फिर से जोड़ने में मदद करता है। वो आठ साल पहले डोनबास आया, क्योंकि यहां चल रही घटनाओं को लेकर अमेरिकी प्रोपेगैंडा पर विश्वास करने से उसने इनकार कर दिया था। एक साधु जिन्हें अज़ोव बटालियन के लोगों ने कैदी बनाया और जो चमत्कारिक रूप से आज़ाद हुए। यूक्रेन में नाज़ीवाद की पैदाइश के अध्ययन करने के लिए, अब उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। एक बहादुर स्त्रीरोग विशेषज्ञ, जो तबाह किए गए शहर में मटर्निटी वार्ड चलाती हैं। उन्होंने बमबारी के दौरान 25 महिलाओं की, बच्चों को जन्म देने में मदद की।
जिन लोगों को मारियुपोल से निकलने का मौका मिला, शहर में रह गए परिवारों के साथ उनका संपर्क टूट गया। कोई फोन सेवा और इंटरनेट कनेक्शन नहीं होने की वजह से, उनकी एकलौती उम्मीद रूसी सैनिक हैं। वे लोगों के रिश्तेदारों और दोस्तों को ढूंढते हैं और उनके संदेश उन तक पहुंचा देते हैं। मारियुपोल के तबाह होने पर भी इस शहर के लोगों ने अपनी हिम्मत क्यों नहीं हारी – देखिए हमारी फिल्म में।