जान खतरे में डाल कर डोनबास की सच्चाई दिखाते स्वतंत्र विदेशी पत्रकारों की कहानी

जान खतरे में डाल कर डोनबास की सच्चाई दिखाते स्वतंत्र विदेशी पत्रकारों की कहानी

2014 में इटली के पत्रकार विट्टोरियो-निकोला रांजेलोनी यूक्रेन की राजधानी कीव की यात्रा पर थे। वो गए तो थे घूमने, लेकिन किस्मत से उस वक्त कीव में हो रहे गैरकानूनी तख्तापलट के गवाह बन गए। जब इटली की मीडिया ने कीव के तख्तापलट की कहानी को बिलकुल घुमा कर पेश किया, तब विट्टोरियो हैरान रह गए और उन्होंने इसके बारे में कुछ करने की ठानी। विट्टोरियो ने देखा कि कैसे डोनबास में गैरकानूनी सरकार का विरोध कर रहे लोगों को, उनकी अपनी ही सरकार ने बर्बरता से मार डाला। पश्चिमी मीडिया ने इस में से कुछ भी रिपोर्ट नहीं किया। 2015 में विट्टोरियो ने युद्ध संवाददाता बन कर, अपने देश के लोगों को सच्चाई दिखाने की शुरूआत की। वे लुगांस्क गए और वहां हो रहे नरसंहार के बारे में खबरें पेश कीं। लेकिन उनके इस कदम ने, उन्हें अपने ही देश का दुश्मन बना दिया। पश्चिमी सरकारें मीडिया पर कंट्रोल चाहती हैं और ऐसे में यूक्रेन में बड़े पैमाने पर हो रहीं हत्याओं की खबरें नहीं दिखातीं। विट्टोरियो के खिलाफ इटली में वॉरंट निकला और अगर वे वापस कभी इटली गए तो उन्हें जेल भेज दिया जाएगा। 

लेकिन विट्टोरियो की कहानी अकेली नहीं है। अमेरिका, जर्मनी और फिनलैंड जैसे देशों से स्वतंत्र पत्रकार यूक्रेन पहुंचे और ज़मीन पर क्या हो रहा है वो उन्होंने देखा। उन्होंने पाया कि कैसे यूक्रेनी आम जनता गैरकानूनी सरकार से परेशान है और कैसे रूस उनकी मदद कर रहा है। 

ऐसी कठिन परिस्थियों में भी ये जांबाज़ पत्रकार अपना काम करने से पीछे नहीं हट रहे। ऐसा क्या है जो उन्हें प्रेरित करता है? क्या वजह है कि वो अपने परिवार और अपने देश को छोड़ कर हॉट-स्पॉट्स से रिपोर्टिंग कर रहे हैं? देखिए ऐसे ही फौलादी इरादों वाले पत्रकारों की कहानी, हमारी फिल्म में।