रूसी बौद्ध लामा इतिगेलोव के अमर शरीर का चमत्कार
पूर्वी साइबेरिया का इवोलगिंस्किय मठ, रूस के प्रमुख बौद्ध मठों में से एक है। ये वही जगह है जहां प्रसिद्ध बौद्ध लामा – दाशी दोरज़ो इतिगेवोल का अमर शरीर रखा हुआ है।
दाशी दोरज़ो इतिगेवोल का जन्म 1852 में रूस के बुर्यातिया गणराज्य में हुआ था। ये राज्य मंगोलिया के काफी करीब है। इतिगेलोव बचपन में अनाथ हो गए लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और चरवाहे का काम किया। एक बार वो एक खोपड़ी लगी हुई छड़ी के साथ लोगों के सामने पहुंचे। वहां मौजूद एक लामा ने उस वक्त भविष्यवाणी की, कि इतिगेलोव “एक प्रसिद्ध लामा बनेगा, और मौत को भी चकमा देगा”
15 साल की उम्र में इतिगेलोव अपने घर से 300 किलोमीटर दूर एक मठ में गए जहां उन्होंने 23 साल तक धार्मिक ग्रंथों की पढ़ाई की। अंत में वे मठ के प्रमुख बने और इतने प्रसिद्ध हुए कि रूस के ज़ार निकोलस द्वितीय भी उनसे सलाह लेने आने लगे। पहले विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने रूसी सैनिकों का हौसला बढ़ाया और अस्पताल के लिए पैसा जुटाया।
1927 में इतिगेलोव ने अपने कुछ चुनिंदा शिष्यों को जुटाया और स्वंय अपनी मृत्यु का ऐलान किया। उन्होंने ये भी भविष्यवाणी की, कि एक दिन वे फिर लौट कर आएंगे। 75 साल बाद जब इतिगेलोव की कब्र को फिर से खोदा गया, तो वैज्ञानिक और डॉक्टर ये देख कर हैरान रह गए कि उनकी शरीर बिलकुल भी गला नहीं था। ऐसा लगता था, जैसे वो जीवित हों।
आज इतिगेलोव को एक संत के रूप में पूजा जाता है।
इवोलगिंस्किय मठ सिर्फ अमर इतिगेलोव लामा का अंतिम विश्राम स्थल नहीं है, बल्कि एक युनिवर्सिटी भी है, जहां युवा भिक्षु बौद्ध धर्म की शिक्षा लेने आते हैं। इस फिल्म में आप आज के दो बौद्ध भिक्षुओं से भी मिलेंगे।
आज नए ज़माने के भिक्षु बौद्ध धर्म के बारे में क्या सोचते हैं? इतिगेलोव लामा के अमर शरीर के बारे में उनके क्या विचार हैं? और बौद्ध धर्म का रूस में क्या भविष्य है? कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशती है हमारी ये खास डॉक्यूमेंट्री