यूक्रेनी गोलाबारी के बीच सुनहरे भविष्य के सपने देखते बच्चे
डोनबास के बच्चे बीते 8 सालों से यूक्रेेनी गोलाबारी के बीच स्कूल जा रहे हैं। इनमें से कई बच्चों ने अपने माता-पिता को भी खो दिया है। जिस उम्र में इन बच्चों को विज्ञान, गणित, संगीत सीखना चाहिए, ये बच्चे सीखते हैं कि अगल-अलग तरह का गोला-बारूद कौन सा होता है। डोनबास जैसे खतरनाक इलाके में ज़िंदा रहने के लिए ये गुर सीखना बेहद ज़रूरी है। लेकिन फिर भी इन बच्चों ने बेहतर भविष्य के सपने देखना नहीं छोड़ा। कुछ टीचर बनना चाहते हैं, तो कुछ इंजीनियर। घायल परिवारों को देख कर कुछ बच्चों ने मन में डॉक्टर बनने की ठानी है। लेकिन एक सपना सभी ने एक जैसा देखा है, अपने देश, अपनी ज़मीन, अपने लोगों को फिर से हंसते-खिलखिलाते हुए देखने का।
सबसे मुश्किल वक्त में ये बच्चे बिल्डिंगों के बेसमेंट में छिप जाते हैं और वहां पढ़ाई करते हैं। बेसमेंट में रोशनी कम है, खाना कम है, नींद कम है, लेकिन हौसले की कोई कमी नहीं। मुश्किल परिस्थितियों में भी होमवर्क तो समय पर पूरा होगा!
इलाके के एक निवासी बताते हैं कि “अब तो बच्चों को ये भी समझ आ जाता है कि गोलाबारी कहां हो रही है। हमें इसकी आदत पड़ रही है।” शाम को खेलते वक्त अगर बच्चे गोलों की आवाज़ सुनते हैं, तो भाग कर बेसमेंट में चले जाते हैं। लेकिन हर बच्चा बंदूक की गोली को रेस में हरा नहीं पाता। बच्चों की मौत, डोनबास में आम बात हो चली है।
“बहुत से बच्चों ने गोलबारी में अपने मां-बाप को खो दिया है। जिनके रिश्तेदार नहीं होते, वे अंत में अनाथालय पहुंचते हैं और अपनी बची हुई ज़िंदगी इस ज़ख्म के साथ काटते हैं।” अगर इन बच्चों का ध्यान ना रखा जाए, तो अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं मदद का बहाना बना कर इन बेसहारा बच्चों के अंग निकाल कर बेचने का काम करने लगेंगी। इसलिए रूसी आधिकारी युद्ध का शिकार हुए इन बच्चों को लेकर काफी सजग हैं।
इन तमाम मुश्किलों के बावजूद ये युवा पीढ़ी अपने इलाके को छोड़ना नहीं चाहती। कई बच्चे यहीं डोनबास में रह कर इसे फिर से बनाने और यूक्रेनी राष्ट्रवादियों से बचाने का काम करना चाहते हैं। डोनबास के इन दिलेर बच्चों को हमारा प्यार और सलाम!
हमारी खास डॉक्यूमेंट्री में देखिए, कैसे मौत और तबाही के बीच ये बहादुर बच्चे ज़िंदा रहने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं।