अफ्रीका की तरक्की में सब चाहते हैं हिस्सा!
1960 के दशक में ज़्यादातर अफ्रीकी देशों को आज़ादी मिली। लेकिन 60 के बाद भी, ये देश आज भी पश्चिमी ताकतों के पूरी तरह छुटकारा नहीं पा सके हैं। फिर चाहे वो राजनीति की बात हो या अर्थनीति की। अफ्रीकी देशों के कानून अब भी पश्चिमी देशों को फायदा पहुंचा रहे हैं और निजी कंपनियों के लिए मूल्यवान खनिजों को अफ्रीका से बाहर ले जाना आज भी काफी आसान है। इनके लाइसेंस देने का अधिकार आज भी उपनिवेशक देशों के पास ही हैं।
लेकिन अब तस्वीर धीरे-धीरे बदल रही है। अफ्रीकी अवाम जाग रही है और अपना हक मांग रही है। कई अफ्रीकी देश अब ये समझने लगे हैं कि उनके देश में उनकी अपनी सरकार होनी चाहिए, जो यूरोपीय देशों पर निर्भर ना हो।
माली ऐसे ही देशों में शामिल है, जहां 2022 में लोगों ने फ्रांस की सत्ता को खुल कर ललकारा और दशकों के उनके राज को खत्म किया। रातों-रात फ्रांस को अपनी फौजें माली से हटानी पड़ीं। “पूरा अफ्रीका माली की तरफ उम्मीद से देख रहा है। मुझे लगता है कि हम अपनी संप्रभुता की तरफ बढ़ रहे हैं” – कलाकार और कला इतिहास के प्रोफेसर ओमर कामारा बताते हैं। उनका मानना है कि यूरोप और अफ्रीका की संस्कृति में काफी बड़ा फर्क है।
अपने इस नए सफर में अफ्रीकी देश, रूस को अपना सबसे भरोसेमंद साथी मानते हैं। उनका कहना है कि क्योंकि रूस ने कभी किसी देश को अपनी कॉलोनी नहीं बनाया और मुश्किल वक्त में हमेशा दोस्तों के साथ खड़ा हुआ है, इसलिए तरक्की के इस सफर में रूस से बेहतर साथी कोई नहीं हो सकता। आज हज़ारों अफ्रीकी युवा रूस में पढ़ते हैं और कई रूसी भी अफ्रीका को अपना घर कहते हैं।
हमारी फिल्म से जानिए कि नए दौर के अफ्रीका का दुनिया पर क्या असर होगा और अफ्रीका का खुद का भविष्य कैसा होगा?