जंग के राज़ तलाशता इटैलियन!
मास्सिमो को द्वितीय विश्व युद्ध में इटली और रूस के संबंधों ने हमेशा मोहित किया। ये विषय उन्हें इतना पसंद आया कि उसे उन्होंने अपनी रिसर्च का हिस्सा बना लिया। सोवियत यूनियन के ज़माने में अपने देश में जानकारी के अभाव के चलते मास्सिमो ने रूस का रुख किया और यहां का शांत वातावरण उन्हें इतना भाया कि उन्होंने मॉस्को को अपना घर बना लिया। लेकिन वो वक्त काफी मुश्किल भरा भी था – “मेरी मां कहती थीं, कि जब मैं रूस में था, तो ऐसा लगता था जैसे मैं मर चुका हूं – क्योंकि मुझसे संपर्क का कोई तरीका नहीं था”, मास्सिमो बताते हैं।
मास्सिमो अपनी होने वाली पत्नी से मिले तो इटली में थे, लेकिन उन्हें करीब से जाना रूस आकर। यहां के लोगों के प्यार और दयालु व्यवहार ने उनका दिल जीत लिया। हालांकि आज भी वो इटली की कुछ खास चीज़ों को याद करते हैं – “कैफे फ्लोरिआन वेनिस का, और दुनिया का सबसे पुराना कैफे है। इसलिए कॉफी एक तरह से हमारी है!”
रूस की कई ऐतिहासिक इमारतों में इतालवी वास्तुकारों ने भी काम किया है। इस फिल्म में जानिए कि मास्सिमो क्यों रूस के बुनियादी ढांचे में इटली के योगदान पर गर्व महसूस करते हैं और उनकी नज़र में राष्ट्रवाद क्या होता है?