एक पायलट की नौकरी के उतार-चढ़ाव
RT डॉक्यूमेंट्री की फिल्म ‘हवाबाज़ जांबाज़’ चार रूसी लड़कियों की दास्तान बयान करती है जिन्होंने एरोबेटिक और कॉमर्शियल विमानों की पायलट बनकर अपनी ज़िन्दगी आसमान के नाम कर दी है।
इन लड़कियों में से एक हैं, मारिया, जो कि फ्लाइट एअरोफ़्लोट की कैप्टन हैं। उन्होंने 31 साल की उम्र में विमान उड़ाना शुरू किया था। पहले उन्होंने निजी विमान उड़ाने के लिए अपना पायलट लाइसेंस हासिल किया, पर जल्द ही उन्हें ये समझ आ गया कि उनके सपने इससे बड़े हैं। इसलिए मारिया ने यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और बड़े विमानों को उड़ाना शुरू किया। आज वे बोइंग 737 उड़ाती हैं, और एअरोफ़्लोट में चार साल तक ‘फ़र्स्ट ऑफ़िसर’ रहने के बाद, ‘पायलट इन कमांड’ के तौर पर उनका प्रमोशन कर दिया गया है।
मारिया को अपनी नौकरी बहुत पसंद है, लेकिन उनका कहना है कि इसके लिए समर्पण और सहनशक्ति की ज़रुरत होती है और आपको इसे अच्छे से करने के लिए जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। बात सिर्फ सिविल एविएशन में विमान उड़ाने तक सीमित नहीं है बल्कि ये एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है, एक ऐसा काम है जो चुनौतियों से भरा है क्योंकि इस काम का कोई समय नहीं है। मारिया बहुत व्यस्त रहती हैं और कभी-कभी उन्हें पता भी नहीं होता कि वो घर कब लौटेंगी। ऐसी ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए अपनी निजी ज़िन्दगी, फुरसत के पलों और ख्वाहिशों को दाव पर लगाना ही पड़ता है।
मारिया के मुताबिक एअरोफ़्लोट ने आज के समय में लगभग दस महिलाओं को ‘पायलट इन कमांड’ के तौर पर नियुक्त किया है। कैप्टन का पद महिलाओं के लिए पहले वर्जित माना जाता था क्योंकि इसे एक खतरनाक पेशा माना जाता था। पर महिलाओं के लिए जब ये अवसर सामने आया, तो उन्होंने बढ़-चढ़ कर इस में हिस्सा लिया और आज वे सभी इसमें बेहतरीन काम कर रही हैं।
पायलट कैसे बनते हैं, ये चारों लड़कियां दुर्घटनाओं से कैसे निपटती हैं, और एक पेशेवर महिला एरोबेटिक्स की ज़िन्दगी कैसी होती है, जानने के लिए देखें हमारी फिल्म।