घर से बेदखल की गईं, सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दी गईं। कहां ले जाएगा इन्हें इनका भाग्य?
एक प्राचीन अंधविश्वास के अनुसार, भारत में एक विधवा के पाप उसके पति की मृत्यु के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। इस वजह से विधवाओं को जीवन भर इसका प्रायश्चित करना पड़ता है। उन्हें अपने बाल छोटे करने पड़ते हैं, सफ़ेद साड़ियां पहननी पड़ती हैं, और उन्हें सामाजिक कार्यक्रमों में भाग नहीं लेने दिया जाता। ये विधवाएं अछूत और मनहूस मानी जाती हैं। ये अपने परिवार के बाकी सदस्यों के लिए सिर्फ एक बोझ बनकर रह जाती है।
लोगों के लिए इनका कोई अस्तित्व नहीं, ये हैं भारत की अदृश्य महिलाएं।
लेकिन समय और समाज बदल रहा है। आज कई समाजिक कार्यकर्ता इन विधवाओं के हित में काम कर रहे हैं और उनके जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश में लगे हैं। वे इन “अदृश्य” महिलाओं की आवाज़ बनकर इस महत्वपूर्ण मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कदम बढ़ा रहे हैं। पर चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं।
वृन्दावन में विधवाओं को अपने जीवन को एक नए सिरे से शुरू करने का मौका मिला है। क्या इस नई आज़ादी के साथ, उनके नीरस जीवन मे फिर से रंग भर पाएंगे? क्या वो एक बार फिर से, खुल कर, खुशी से अपनी ज़िंदगी जी पाएंगी?